UBC Day 28 : Proud of You, KG!

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 क्षितिज मैंने तुम्हारे इस रूप को आज ही जाना, मुझे अभिमान है तुम्हारा सहपाठी होने पर …

July 28, 2013 at 12:49am

सन 1988  में केंद्रीय विद्यालय नंबर एक बजाज नगर जयपुर से स्कूली शिक्षा पूरी की थी और अब इस वर्ष 25 साल पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आगामी 3  अगस्त को जयपुर में सभी सहपाठियों के मिलने का कार्यक्रम है ।  इस महत्वपूर्ण काम को हाथ में तो ले लिया किन्तु मन ही मन एक आशंका थी कि बालकपन के जिन सहपाठियों को मैं जानता था, अब पच्चीस वर्ष पूर्ण होने पर ना जाने उनमे कितने ही परिवर्तन सोच, समझ और व्यवहार के स्तर पर आ चुके होंगे ..कैसे होगा वो पुनर्मिलन और क्या अनुभव होंगे ।

इसी कार्यक्रम के आयोजन के सिलसिले में आज मैं अपने बालसखा और घनिष्ठ मित्र क्षितिज के साथ कुछ संभावित आयोजन स्थलों पर जाना हुआ ।  मेरे घर से जयपुर हवाई अड्डे की ओर जाते हुए रास्ते की एक घटना ने मेरा मन, मेरा रोम रोम अभूतपूर्व सुख और आनंद से भर दिया।  घटना आज जवाहर सर्किल पे दिन में हुई जहाँ वाहनों की एक लम्बी कतार लगी थी और सभी वाहन तेज बारिश में सरक सरक कर निकल रहे थे । जब क्षितिज ने अपनी कार वहां से निकाली तो हम दोनों ने देखा कि एक घोड़ी बीच रास्ते में किसी अज्ञात वाहन की टक्कर से घायलावस्था में पड़ी तड़पते जीवन -मृत्यु का संघर्ष कर रही है । जैसे ही हमारी कार उस घायल घोड़ी के पास से अन्य वाहनों की तरह धीरे से निकली ..कि कुछ फिट की फीट की दूरी पर क्षितिज ने अपनी कार साइड में रोक दी, इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, बिजली की सी फुर्ती से क्षितिज  कार से उतरा और भाग कर सड़क पे तड़प रही944748_555396834519180_607642257_n घोड़ी को दुलारने लगा। क्षितिज का यह कदम मेरे लिए अत्यंत अप्रत्याशित था, जब तक मैं कार से उतरता तब तक तो वह उस निरीह घायल जानवर को अकेला ही सहारा देकर खड़ा करने के प्रयास में जुट गया ।

मैंने  पहुँचने पर क्षितिज की सहायता करनी शुरू की तो उसने शीघ्रता से मुझे कार की डिक्की से कुछ साफ़ कपडे निकालने के लिए कहा ..कार की डिक्की खोलकर जब मैंने देखा कि उसमे क्षितिज की पत्नी  का स्कार्फ और कुछ अन्य कपडे रखे है तो मैंने उसे बताया कि कोई ऐसा कपडा डिक्की में नहीं है जो उसे दे सकूँ। हम दोनों बारिश में पूरी तरह भीग चुके थे .. क्षितिज दौड़ कर कार के पास आया और बिना मेरी और देखे वो स्कार्फ उठाया और ले जाकर उस घायल घोड़ी की आँखों पे रख दिया जिससे वो आते जाते वाहनों से घबराए नहीं .. 934638_555396417852555_1965429391_nसड़क पर उकडू बैठ कर क्षितिज कभी उस घोड़ी के घायल पैरों को सहलाता तो कभी उसके पैरों को समेटकर कहीं उसकी पैर की हड्डी तो नहीं टूट गयी है इसकी जांच करता।
1011603_555397194519144_1240878246_nअदभुद दृश्य था ..

 

चमचमाती हौंडा सिटी कार से उतरकर एक व्यक्ति लावारिस जानवर को बचाने के लिए प्रयत्नशील था .. जैसे कोई उसका बहुत अपना हो, आजकल जमाने की रफ़्तार ऐसी है कि कोई आदमी सड़क पे पड़ा तड़पता रहे तब भी कोई गाडी नहीं रोकता और उसे अस्पताल पहुंचाने की नहीं सोचता, किन्तु  भावविह्वल क्षितिज उस मूक जानवर को बस किसी भी तरह खड़ा कर देना चाहता था ..

मैंने क्षितिज से कहा कि मैं एक ऐसे 1005780_555396657852531_1576556542_nअस्पताल को 30 वर्षों से जानता हूँ जो ऐसे जानवरों की मदद करता है “हेल्प इन सफ़रिंग” आस्ट्रेलियाई स्त्री मैडम क्रिसटल रोजर्स से जयपुर में स्थापित किया था और मैं उनसे बहुत लम्बे समय तक जुड़ा रहा और अब वे इस संसार में नहीं है। क्षितिज ने मुझे तुरंत उन संस्था से संपर्क करने को कहा इस दौरान हम दोनों को देखकर कुछ 2-4  युवा और भी आ जुटे .. हम दोनों बारिश में भीगकर तर थे कपड़ों का कोई ठिकाना नहीं, जब तक मैं उस संस्था का नंबर फ़ोन के नैट से ढूंढता तब तक क्षितिज ने वाहन खड़े उन युवाओं से ट्रेफिक नियंत्रण करने को कहा  .., अब क्या था ..हमने घायल घोड़ी को कठिनाई से सड़क के बीच से लुढकाकर .. सड़क के एक ओर किनारे किया …क्षितिज का सेवा भाव देखते ही बनता था ..करुणा से भरपूर मानवता का अनूठा उदाहरण मेरे सम्मुख था, मेरे बाल सखा को इस रूप में देखकर मन फूला नहीं समाता था ..अभिमान सा होता था ..

मेरे फोन करने के बाद “हेल्प इन सफ़रिंग” से विशेष अम्बुलेंस आई, जानवर को दर्द निवारक इंजेक्शन दिया गया, रस्सों से लेकर उसे वाहन की लिफ्ट में चढ़ाया गया ..क्षितिज अब भी रस्से का सिरा पकड़ कर जुटा हुआ था ..वो घोड़ी के साथ पहले लिफ्ट पर और बाद में लिफ्ट से अम्बुलेस में लेने के लिए अम्बुलेंस के भीतर तक रस्से को खिंचवाता रहा …और जब तक घायल जानवर सड़क से उठकर अपने हाथों से अम्बुलेस में नहीं चढ़ा दिया गया मेरा मित्र तन्मयता से जुटा रहा …।  “हेल्प इन सफ़रिंग” की अम्बुलेंस उसे लेकर रवाना हो गयी और भीगे कपड़ो और सने हुए हाथ लिए क्षितिज ..अपनी लग्ज़री कार के स्टेयरिंग पर बैठा मुस्कुरा रहा था, गंतव्य की ओर बढ़ने के लिए … क्षितिज को देखकर मेरे मन में आज यह बात बात पूरी तरह निर्मूल हो गयी की 25  वर्षों ने कहीं कुछ हमारे भीतर बदला है, पैदल से साइकिल पर और साइकिल से कार तक का सफ़र भले ही तय कर लिया हो  किन्तु गुरुजनों का सिखाया मानवता का पाठ नहीं भूले ..

क्षितिज मैंने तुम्हारे इस रूप को आज ही जाना, मुझे अभिमान है तुम्हारा सहपाठी होने पर … उसी लस्त पस्त हालत में हम दोनों एक पंचतारा होटल में गए ..शेष मित्रो के लिए 3  अगस्त की व्यवस्थाये जो करनी थी … तुम्हे बार- बार गले लगाने को मन करता है क्षितिज ..तुम नहीं जानते आज तुम्हारा सम्मान मेरे मन में कितना बढ़ गया है !

बस मन गदगद है …

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969020_555399531185577_821576879_nOnly one thought comes to my mind after reading this and seeing these pics… Proud of you, KG! 🙂

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